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.कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते

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   एक बहस सी छिड़ी हुई है इस मुद्दे पर कि कैग विनोद राय ने जो किया सही था या नहीं ?अधिकांश यही मानते हैं कि विनोद राय ने जो किया सही किया .आखिर  टी.एन.शेषन से पहले भी कौन जनता था चुनाव आयुक्तों को ?और यह केवल इसलिए क्योंकि एक लम्बे समय से कॉंग्रेस   नेतृत्व से जनता उकता चुकी है और इस कारण जो बात भी कॉंग्रेस सरकार के खिलाफ जाती है उसका समर्थन करने में यह जनता जुट जाती है और दरकिनार कर देती है उस संविधान को भी जो हमारा सर्वोच्च कानून है और हमारे द्वारा समर्थित व् आत्मार्पित है .   हमारे संविधान के अनुच्छेद १४९ के अनुसार -नियंत्रक महालेखा परीक्षक उन कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संसद निर्मित विधि के द्वारा या उसके अधीन विहित किये जाएँ .जब तक संसद ऐसी कोई विधि पारित नहीं कर देती है तब तक वह ऐसे कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संविधान लागू होने के पूर्व भारत के महालेखा परीक्षक को प्राप्त थे .     इस प्रकार उसके दो प्रमुख कर्तव्य हैं -प्रथम ,एकाउंटेंट के रूप में वह भारत की संचित निधि में से निकली जाने वाली सभी रकमों पर नियंत्रण र

संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग

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 संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग     आज उथल-पुथल का दौर है ,जो जहाँ है वह वहीँ से इस कार्य में संलग्न है सरकार ने महंगाई से ,भ्रष्टाचार से देश व् देशवासियों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है ,तो विपक्ष ने कभी कटाक्षों के तीर चलाकर ,कभी राहों में कांटे बिछाकर सरकार की नींद हराम कर दी है कभी जनता लोकपाल मुद्दे पर तो कभी दामिनी मुद्दे पर हमारे लोकतंत्र को आईना दिखा रही है तो कभी मीडिया बाल की खाल निकालकर तो कभी गड़े मुर्दे उखाड़कर हमारे नेताओं की असलियत सामने ला रही है.इसी क्रम में अब आगे आये हैं कैग ''अर्थात नियंत्रक -महालेखा -परीक्षक श्री विनोद राय ,इनके कार्य पर कुछ भी कहने से पहले जानते हैं संविधान में कैग की स्थिति .     कैग अर्थात नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद १४८ के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है .अनुच्छेद 149 में नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक के कर्तव्य व् शक्तियां बताएं गए हैं -अनुच्छेद १४९-नियंत्रक महालेखा परीक्षक उन कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संसद निर्मित विधि के द्वारा या उसके अधीन विहित क

अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस

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अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस दिल्ली गैंगरेप कांड के एक आरोपी अफ़रोज़ के नाबालिग होने के कारण उसकी इस कांड में सर्वाधिक वहशी संलिप्तता होने के बावजूद उसे नाममात्र की ही सजा मिलने की बात है और इसलिए एक प्रश्न यह भी उठाया जा रहा है कि यदि कसाब भी नाबालिग होता तो क्या वह भी छूट जाता ?  दिल्ली गैंगरेप कांड के एक आरोपी अफ़रोज़ के नाबालिग होने के कारण उसकी इस कांड में सर्वाधिक वहशी संलिप्तता होने के बावजूद उसे नाममात्र की ही सजा मिलने की बात है और इसलिए एक प्रश्न यह भी उठाया जा रहा है कि यदि कसाब भी नाबालिग होता तो क्या वह भी छूट जाता ?   इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें भारतीय कानून का गहराई से विभिन्न पहलूओं पर अवलोकन करना होगा .    किशोर न्याय [बालकों की देखभाल व् संरक्षण ]अधिनियम २००० की धारा २ k के अनुसार किशोर से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसने १८ वर्ष की आयु पूरी न की हो .   और इसी अधिनियम  की धारा १६ कहती है कि किसी किशोर को जिसने कोई अपराध किया है मृत्यु या आजीवन कारावास का दंड नहीं दिया जायेगा और न ही प्रतिभूति या जुर्माना जमा करने में चूक होने पर कारावासित किया जायेगा  ......इ