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गैंगरेप में मृत्यु दंड हो

मृत्युदंड एक ऐसा दंड जिसका समर्थन और विरोध हमेशा से होता रहा है पर जब जब इसके विरोध की आवाज़ तेज हुई है तब तब कोई न कोई ऐसा अपराध सामने आता रहा है जिसने इसकी अनिवार्यता पर बल दिया है हालाँकि इसका  समर्थन और विरोध न्यायपालिका में भी रहा है किन्तु अपराध की नृशंसता इस दंड की समाप्ति के विरोध में हमेशा से खड़ी रही है और इसे स्वयं माननीय न्यायमूर्ति ए.पी.सेन ने ''कुंजू कुंजू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य क्रिमिनल अपील ५११ [१९७८] में स्वीकार किया है .     ''कुंजू कुंजू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के वाद में अभियुक्त एक विवाहित व्यक्ति था जिसके दो छोटे बच्चे भी थे .उसका किसी युवती से प्रेम हो गया और उससे विवाह करने की नीयत से उसने अपनी पत्नी और दोनों बच्चों की रात में सोते समय निर्मम हत्या कर दी .''      इस वाद में यद्यपि न्यायाधीशों ने 2:1 मत से इन तीन हत्याओं के अभियुक्त की मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाना उचित समझा परन्तु न्यायमूर्ति ए .पी. सेन ने अपना विसम्मत मत व्यक्त करते हुए अवलोकन किया -   '' अभियुक्त ने एक राक्षसी कृत्य किया है तथा अपनी पत्नी तथा