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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एमपी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, बच्ची से रेप पर फांसी की सजा

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एमपी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, 12 साल से कम उम्र की बच्ची से रेप पर फांसी की सजा बच्‍ची से रेप के मामले में मध्यप्रदेश की सरकार ने कैबिनेट में एक एतिहासिक प्रस्ताव पास किया है। जिसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्‍ची के साथ रेप करने का दोषी पाए जाने पर गुनहगारों को मौत की सजा दी जाएगी। रेप के मामलों में इस तरह का सख्त कानून बनाने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है।  रविवार को   मध्यप्रदेश  में कैबिनेट में यह प्रस्ताव पास किया गया है। इस प्रस्ताव के तहत 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ  बलात्कार   करने के दोषी को मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया है।।यह सजा गैंगरेप वाले मामले में भी लागू होगी। इस मामले में सजा और जुर्माना दोनों ही होगा।  बच्चियों से रेप के मामलों में देशभर में लगातार वृद्िध हो रही है। ऐसे में लंबे समय से इस मामले में सख्त कानून बनाए जाने की मांग चल रही थी। मध्यप्रदेश में इस तरह के कई मामले सामने आए थे, इसी कड़ी में अब सरकार ने इस संबंध में कानून बनाने का फैसला किया। जिसके चलते आज मध्यप्रदेश कैबनेट ने यह फैसला लिया। [साभार अमर उजाला ] शालिनी कौ

संविधान दिवस (भारत)

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किसी भी संशोधन से पहले भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मूल पाठ संविधान दिवस  (26 नवम्बर)  भारत गणराज्य का संविधान   26 नवम्बर  1949 को बनकर तैयार हुआ था।  संविधान सभा  के निर्मात्री समिति के अध्यक्ष  डॉ॰ भीमराव आंबेडकर  के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को संविधान दिवस मनाया गया। डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने भारत के महान संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। [1]  गणतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से संविधान अमल में लाया गया। आंबेडकरवादी और बौद्ध लोगों द्वारा कई दशकों पूर्व से ‘संविधान दिवस’ मनाया जाता है।  भारत सरकार  द्वारा पहली बार 2015 से  डॉ॰ भीमराव आंबेडकर  के इस महान योगदान के रूप में 26 नवम्बर को "संविधान दिवस" मनाया गया। [2] [3]  26 नवंबर का दिन संविधान के महत्व का प्रसार करने और डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के विचारों और अवधारणाओं का प्रसार करने के लिए चुना गया था। [4] [मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से] शालिनी कौशिक  [कानूनी ज्ञान ]

तलाक़ ऐसे भी ...

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     तलाक कहूं या विवाह -विच्छेद ,बहुत दुखद होता है किन्तु बहुत सी शादियां ऐसी होती हैं जिनमे अगर तलाक न हो तो न पति जी सकता है और न पत्नी ,बच्चों के तो कहने ही क्या ,ऐसे में तलाक आवश्यक हो जाता है .हिन्दू विधि में तलाक के बहुत से ढंग कानून ने दिए हैं किन्तु उनमे बहुत सी बार इतना समय लग जाता है कि आदमी हो या औरत ज़िंदगी का सत्यानाश ही हो जाता है इसीलिए बहुत सी बार पति या पत्नी में से कोई भी इन तरीको को अपना कर दूसरे को परेशान करने के लिए इन्ही का सहारा लेता है लेकिन जहाँ सद्भावना होती है और सही रूप में ये सोचते हैं कि हमारे अलग होने में ही भलाई है वहां विवाह-विच्छेद का एक और तरीका भी है और वह है -''पारस्परिक सहमति से विवाह-विच्छेद ''          हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा १३-ख पारस्परिक सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद के बारे में प्रावधान करती है .इसमें कहा गया है - ''इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन रहते हुए या दोनी पक्षकार मिलकर विवाह-विच्छेद की डिक्री विवाह के विघटन के लिए याचिका जिला न्यायालय में ,चाहे ऐसा विवाह ,विवाह विधि[ संशोधन ]अधिनियम ,१९७६ के प्रारम्भ  के

डी.जे. बंद .........

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अभी पिछले दिनों की बात है घर के पीछे स्थित एक धर्मशाला में विवाह समारोह था और जैसा कि आजकल का प्रचलन है वहाँ डी.जे. बज रहा था और शायद full volume में बज रहा था और जैसा कि डी.जे. का प्रभाव होता है वही हो रहा था ,उथल-पुथल मचा रहा था ,मानसिक शांति भंग कर रहा था और आश्चर्य की बात है कि हमारे कमरों के किवाड़ भी हिले जा रहे थे ,हमारे कमरों के किवाड़ जो कि ऐसी दीवारों में लगे हैं जो लगभग दो फुट मोटी हैं और जब हमारे घर की ये हालत थी तो आजकल के डेढ़ ईंट के दीवार वाले घरों की हालत समझी जा सकती है .बहुत मन किया कि जाकर डी.जे. बंद करा दूँ किन्तु किसी की ख़ुशी में भंग डालना न हमारी संस्कृति है न स्वभाव इसलिए तब किसी तरह बर्दाश्त किया किन्तु आगे से ऐसा न हो इसके लिए कानून में हमें मिले अधिकारों की तरफ ध्यान गया . भारतीय दंड सहिंता का अध्याय १४ लोक स्वास्थ्य ,क्षेम ,सुविधा ,शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में है और इस तरह से शोर मचाकर जो असुविधा जन सामान्य के लिए उत्पन्न की जाती है वह दंड सहिंता के इसी अध्याय के अंतर्गत अपराध मानी जायेगी और लोक न्यूसेंस के अंतर्गत आएगी .भार

मृतक का आश्रित :अनुकम्पा नियुक्ति

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     अभी लगभग १ वर्ष पूर्व हमारे क्षेत्र के एक व्यक्ति का देहांत हो गया .मृतक सरकारी कर्मचारी था और मरते वक्त उसकी नौकरी की अवधि शेष थी इसलिए मृतक आश्रित का प्रश्न उठा .यूँ तो ,निश्चित रूप से उसकी पत्नी आश्रित की अनुकम्पा पाने की हक़दार थी लेकिन क्योंकि मृतक ने पहले ही वह नौकरी अपने पिता के मृतक आश्रित के रूप में प्राप्त की थी इसलिए मृतक की बहन भी मृतक आश्रित के रूप में आगे आ गयी .मृतक की बहन के मृतक आश्रित के रूप में आगे आने का एक कारण और भी था और वह था इलाहाबाद हाईकोर्ट का ११ फरवरी २०१५ को दिया गया फैसला जिसमे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना था ''परिवार की परिभाषा में भाई-बहन-विधवा माँ भी ".         इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित अनुकम्पा नियुक्ति 1974 की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि वर्ष २००१ में हुए संशोधन के बाद ''परिवार'' का दायरा बढ़ा दिया गया है .इसके अनुसार यदि मृत कर्मचारी अविवाहित था और भाई-बहन व् विधवा माँ उस पर आश्रित थे तो वह परिवार की परिभाषा में आते हैं .वह अनुकम्पा आधार पर नियुक्ति पाने के हक़दार हैं .           मुख्य न्यायाधीश डॉ.डी.वाई .

हाय रे! क्रूरता पर भी भरण-पोषण

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पति द्वारा क्रूरता से तो सभी वाकिफ हैं और उसके परिणाम में पति को सजा ही सजा मिलती है किन्तु आनंद में तो पत्नी है जो क्रूरता भी करती है तो भी सजा की भागी नहीं होती उसकी सजा मात्र इतनी कि उसके पति को उससे तलाक मिल सकता है किन्तु नारी-पुरुष समानता के इस युग में पारिवारिक संबंधों के मामले में पुरुष समानता की स्थिति में नहीं है .      2016  [1 ] D .N .R .[D .O .C .-11 ]17 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955  की धारा 13  के अंतर्गत क्रूरता के आधार पर पति भी अपनी पत्नी से तलाक ले सकता है .        इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उपरोक्त वाद में पत्नी द्वारा पति के विरूद्ध कई दाण्डिक एवं सिविल प्रकरणों का दाखिल किया जाना क्रूरता माना और इस आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने का अधिकारी मानते हुए कहा कि ऐसी क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री पारित की जा सकती है ,साथ ही यह भी कहा कि ऐसे में यदि तलाक की डिक्री पारित की जाती है तो पति को पत्नी को स्थायी निर्वाह व्यय देना होगा .इस तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलाक की डिक्री के विरूद्ध अपील को ख़ारिज किया लेकिन पति को निर्देशित